Monday, November 12, 2018

मोदी सरकार ने SC में बताया- क्यों और कैसे खरीदा राफेल

राफेल विमान डील पर छिड़े विवाद ने अभी भी राजनीतिक तूल पकड़ा हुआ है. राजनीति के अलावा इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई जारी है. सोमवार को केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील से जुड़े सभी दस्तावेज सौंपे.

केन्द्र सरकार ने 36 राफेल विमानों की खरीद के संबंध जो भी फैसले लिए गए हैं, उन सभी की जानकारी याचिकाकर्ता को सौंप दी है. राफेल विवाद से जुड़ी याचिका वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी. केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कुल 9 पेज के दस्तावेज सौंपे हैं, जिनमें इस डील का पूरा इतिहास, प्रक्रिया को समझाया गया है.

सरकार ने दस्तावेजों में कहा है कि उन्होंने राफेल विमान रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत इस खरीद को अंजाम दिया है. विमान के लिये रक्षा खरीद परिषद की मंजूरी ली गई थी, भारतीय दल ने फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत की.

दस्तावेजों में कहा गया कि फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत तकरीबन एक साल चली और समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की मंजूरी ली गई.

केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि राफेल पर भारतीय ऑफसेट पार्टनर चुनने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. ये पूरी तरह से ऑरिजनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चरर ( OEM) यानी डेसाल्ट एविएशन का फैसला था. दस्तावेज में बताया गया है कि आफसेट पार्टनर का चुनाव दो निजी कंपनियों का फैसला था, इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी.

आपको बता दें कि अपनी याचिका में याचिकाकर्ता के द्वारा अपील की गई थी कि केंद्र सरकार को राफेल विमान के दाम सार्वजनिक करने चाहिए.

देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस मामले में सरकार पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाती रही है. हालांकि, सरकार का पक्ष रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर राफेल विमान की कीमतों का खुलासा नहीं किया जा सकता है.

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन का विवाद अभी भी कोर्ट में चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इस मामले की तेजी से सुनवाई करने के लिए अपील की गई थी. ये अपील अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने दाखिल की थी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले की सुनवाई जल्द करने से इनकार कर दिया है.

चीफ जस्टिस का कहना है कि उन्होंने पहले ही इस मामले में तारीख दी हुई है. गौरतलब है कि इस मुद्दे पर इससे पहले 29 अक्टूबर को सुनवाई हुई थी. इस सुनवाई में चीफ जस्टिस ने सुनवाई टाल दी थी और जनवरी, 2019 की तारीख दी थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाने से संत समाज में काफी रोष पैदा हुआ था.

आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम जोसफ की पीठ कर रही है.

क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला?

हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में ये केस बीते 8 साल से है. 2019 के आम चुनावसे पहले इस मसले ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है.

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