Tuesday, April 23, 2019

गुजरात : भाजपा 19 सीटों पर सुरक्षित, असल चुनाव 7 सीटों पर

गुजरात में आज चुनाव है। नेताओं को जो कहना था, बताना था, समझाना था, वह सब कर चुके। आज जनता बताएगी कि उसने किसे-कितना सुना और किस पर उसे यकीन हुआ। तमाम सर्वे, दावों के बावजूद भाजपा गुजरात को लेकर परेशान नहीं है। गुजरात में भाजपा की मजबूती का अंदाजा 2014 के नतीजों से लगा सकते हैं। तब सूरत, वडोदरा और नवसारी सीटें उसने पांच लाख के अंतर से जीती थीं। जबकि गांधीनगर सीट पर जीत का अंतर चार लाख रहा था। दो सीटों पर जीत का मार्जिन तीन लाख और 10 सीटों पर अंतर दो लाख  से ज्यादा वोटों का था। वहीं सात सीटें ऐसी भी थीं जहां करीब एक लाख वोटों का अंतर था। देखा जाए तो भाजपा 19 सीटों पर सुरक्षित दिखती है। असल चुनाव तो इन सात सीटों पर होना है, जहां बहुत ही मामूली अंतर से जीत-हार का फैसला होगा।

दूसरी ओर 2017 के विधानसभा चुनाव से तुलना करें तो 26 में से 7 सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस को  भाजपा से 14 हजार से लेकर 1.68 लाख वोट ज्यादा मिले। ये सीटें थीं बनासकांठा, पाटण, मेहसाणा, साबरकांठा, सुरेंद्रनगर, जूनागढ़ और अमरेली। कांग्रेस अपने लिए सबसे ज्यादा मौके भी इन्हीं सीटों पर देख रही थी। इस बात का भाजपा को भी अंदाजा था। भाजपा को पता था कि मोदी ही वो फैक्टर हैं जो हर एंटी इन्कमबेंसी और बगावत को शांत कर सकते हैं।

यही वजह है कि मोदी ने गुजरात में जो 7 रैलियां की, उनमें से 4 रैलियां इन्हीं सीटों पर हुई हैं। नतीजा-जो माहौल इन सीटों पर कुछ दिनों पहले एकतरफा दिख रहा था, वहां भाजपा ने न सिर्फ वापसी की है, बल्कि वह बढ़त भी बनाती दिखने लगी है। भाजपा गुजरात में मोदी वर्सेस गुजरात विरोधी, देश विरोधी का फैक्टर साबित करने में सफल रही। वहीं राहुल गांधी गुजरात को लेकर अनमने से नजर आए। 2014 में राहुल और सोनिया ने मोदी लहर के बावजूद गुजरात में 11 रैलियां की, इस बार सिर्फ राहुल आए और 5 रैलियां कर गए। प्रचार का पूरा जिम्मा हार्दिक पटेल, अहमद पटेल और स्थानीय नेताओं पर छोड़ दिया। इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी को भी गुजरात से दूर रखा गया।

शहरों में वोटिंग ज्यादा तो भाजपा को फायदा, गांवों में कांग्रेस को : गुजरात में मौसम विभाग ने वोटिंग के दिन हिट वेव की आशंका जताई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों की कोशिश है कि शुरुआती 4 घंटों में ज्यादा वोटिंग हो। भाजपा शहरों में ज्यादा और गांवों में कम वोटिंग में फायदा देख रही है। इसके उलट कांग्रेस की कोशिश गांवों में ज्यादा वोटिंग की है। गुजरात में 43% वोटर शहरों में, 57% वोटर गांवों में हैं। 2014 में 60% वोटिंग हुई थी। हालांकि वो एक लहर थी। लेकिन 2009 में 47.9% वोटिंग हुई थी। इनमें गांवों की भूमिका बड़ी थी। भाजपा को 15, कांग्रेस को 11 सीटें मिली थीं।

आखिरी दिन का माहौल|उत्तर-दक्षिण और मध्य में भाजपा की वापसी, कांग्रेस सौराष्ट्र के सहारे

मध्य गुजरात (9 सीटें)

भाजपा सिर्फ आणंद में नर्वस है। अहमदाबाद की पूर्व-पश्चिम सीटों पर जीत का अंतर घट सकता है। गांधीनगर में अंतर बढ़ सकता है। हार्दिक को चांटा लोगों को प्रायोजित लग रहा है। भरुच में त्रिकोणीय लड़ाई का फायदा भाजपा को है। कांग्रेस से मुस्लिम उम्मीदवार होने से ध्रुवीकरण होगा।
दक्षिण गुजरात (5 सीटें)

सूरत, नवसारी, वलसाड में भाजपा मजबूत है। सूरत में दर्शना जरदोश के खिलाफ नाराजगी है, लेकिन मोदी से फायदा है। वलसाड में कांग्रेस ने जोर लगा रखा है, ये वोटों में कितना तब्दील होता है ये नतीजे आने पर पता चलेगा। जीएसटी, नोटबंदी का मुद्दा गायब है। राष्ट्रवाद की चर्चा है।
उत्तर गुजरात (5 सीटें)

भाजपा पाटण में कमजोर है। लेकिन मोदी की रैली असर दिखा सकती है। अल्पेश के इस्तीफे ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया है। मेहसाणा, साबरकांठा, बनासकांठा में मार्जिन का गेम है। सीटें किसी भी तरफ झुक सकती हैं। बनासकांठा में डेयरी वालों का फरमान भाजपा पर असर डालेगा।
सौराष्ट्र-कच्छ (7 सीटें)

अमरेली से कांग्रेस प्रत्याशी परेश धानाणी की पटेल स्टेच्यू पर टिप्पणी को मोदी ने मुद्दा बनाया है। इसका असर हो सकता है। राजकोट, जामनगर, कच्छ और भावनगर सीट भाजपा निकालेगी। पोरबंदर में कांटे की टक्कर है। जूनागढ़ का हाल भी अमरेली जैसा है। यहां मामूली अंतर से फैसला होगा।

ओवरऑल : 26 सीटों पर नजर डालें तो भाजपा 22 या 23 सीटों पर जीत सकती  है। जबकि कांग्रेस 3 या 4 सीटों पर। इनमें अधिकांश का फैसला बहुत मामूली अंतर से होने वाला है। बहरहाल, वोटरों के दिल में क्या है, ये तो नतीजे ही बताएंगे।

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